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हरिप्रियानुजां वन्दे देवीं त्रिपुरसुन्दरीम् ॥७॥
वास्तव में यह साधना जीवन की एक ऐसी अनोखी साधना है, जिसे व्यक्ति को निरन्तर, बार-बार सम्पन्न करना चाहिए और इसको सम्पन्न करने के लिए वैसे तो किसी विशेष मुहूर्त की आवश्यकता नहीं है फिर भी पांच दिवस इस साधना के लिए विशेष बताये गये हैं—
काञ्चीवासमनोरम्यां काञ्चीदामविभूषिताम् ।
प्राण प्रतिष्ठा में शीशा टूटना – क्या चमत्कार है ? शास्त्र क्या कहता है ?
This mantra is definitely an invocation to Tripura Sundari, the deity staying addressed With this mantra. It is a ask for for her to satisfy all auspicious dreams and bestow blessings on the practitioner.
चतुराज्ञाकोशभूतां नौमि श्रीत्रिपुरामहम् ॥१२॥
हव्यैः कव्यैश्च सर्वैः श्रुतिचयविहितैः कर्मभिः कर्मशीला
॥ अथ श्री त्रिपुरसुन्दरीवेदसारस्तवः ॥
देवस्नपनं मध्यवेदी – प्राण प्रतिष्ठा विधि
श्रीचक्रान्तर्निषण्णा गुहवरजननी दुष्टहन्त्री वरेण्या
॥ अथ श्रीत्रिपुरसुन्दरी अपराध क्षमापण स्तोत्रं ॥
श्रीगुहान्वयसौवर्णदीपिका दिशतु श्रियम् ॥१७॥
इसके अलावा त्रिपुरसुंदरी देवी अपने नाना रूपों में भारत के विभिन्न प्रान्तों में पूजी जाती हैं। वाराणसी में राज-राजेश्वरी मंदिर विद्यमान हैं, जहाँ देवी राज राजेश्वरी(तीनों लोकों की रानी) के रूप में पूजी जाती click here हैं। कामाक्षी स्वरूप में देवी तमिलनाडु के कांचीपुरम में पूजी जाती हैं। मीनाक्षी स्वरूप में देवी का विशाल भव्य मंदिर तमिलनाडु के मदुरै में हैं। बंगाल के हुगली जिले में बाँसबेरिया नामक स्थान में देवी हंशेश्वरी षोडशी (षोडशी महाविद्या) नाम से पूजित हैं।
Being familiar with the importance of such classifications can help devotees to choose the suitable mantras for their private spiritual journey, making certain that their methods are in harmony with their aspirations along with the divine will.